Monday, July 26, 2021
Thursday, July 22, 2021
Thursday, July 15, 2021
नवोदित मराठी गझल गायकांचें अभिनंदन व शुभेच्छा...
२०१७ मध्ये पुण्याच्या सावित्रीबाई फुले विद्यापीठात झालेल्या जागतिक मराठी गझल संमेलनाच्या एका सत्रात,मराठीमध्ये ज्या प्रमाणात गझल लिहिणारे तयार झाले त्या प्रमाणात गायक/गायिका तयार झाल्या नाहीत,अशी खंत मी व्यक्त केली होती.परंतू गेल्या चार वर्षात पुढे आलेल्या मराठी गझल गायकांची संख्या पाहून आनंदाने ऊर भरून आला.याचसाठी माझा अट्टाहास होता. मी लावलेल्या रोपट्याचा वटवृक्ष होत चालला ही मराठी गझलसाठी व माझ्यासाठीही खूप आनंदाची बाब आहे.सर्व नवोदित मराठी गझल गायक/गायिकांचे मनःपूर्वक अभिनंदन व भविष्यातील वाटचालीकरिता खूप खूप शुभेच्छा...
Tuesday, July 13, 2021
एक शम्मा जिगर में ही जलती रही...श्रद्धा पराते
नागपुर के धनवटे रंगमंदिर में १५ जून की शाम मराठी ग़ज़ल के नाम संपन्न हो गयी। गायक थे,यवतमाल जिला आर्णी के श्री सुधाकर कदम। नगर के कलाप्रेमी रसिकों के लिए मराठी ग़ज़ल गायन का तीन घंटे का कार्यक्रम प्रथम प्रयोग था जिसे अपूर्व प्रतिसाद मिला।तालियों से हॉल निरंतर गुंजता रहा।वैसे अनुभव यह है कि मराठी श्रोता दाद देने में निहायत कंजूस है,किंतू इस प्रोग्राम में विदर्भ के मराठी कवियों की रचनाओं को और श्री सुधाकर कदम की गायकी के अंदाज को समय समर पर दाद मिली।उर्दू-हिंदी ग़ज़ल की महफिल आम बात है।शब्द चाहे ना समझे वह श्रोता के दिल में उतर ही जाते है और आप की वाह निकल पडती है।ग़ज़ल की मूल प्रकृति को दुसरी भाषाओं में ढालना बहुत कठीन काम है।
फिर भी अन्य भाषाओं में भी ग़ज़ल सफलतापूर्वक लिखी जा रही है।मराठी ग़ज़ल अभी भी ग़ज़ल की आत्मा को पकड नहीं पाई,किंतू मराठी कवि निरंतर प्रयासरत है।उनकी लेखनी से ग़ज़ल उतर रही है। गायक के गलेसे होकर जबतक ग़ज़ल लोगों के दिल में उतर नहीं जाती,तब तक के निर्माण का उद्देश सफल नहीं हो पाता।
मराठी ग़ज़ल गाने के इस कठीन व्रत को चुनौती के साथ स्वीकारा है,श्री सुधाकर ने...उनका अपना अलग अंदाज़ है। मराठी रचना के मराठीपन को क्षति न पहुंचाते हुए,बडी ही सुहानी तर्जो में वे रचना को कुशलतापूर्वक बांधते है। कवि की कविता का मूल स्वर पकड पाना उनका अपना सामर्थ्य है।उनकी स्वरधारा रसिकों का मन मोहने का सामर्थ्य रखती है।धनवटे रंगमंदिर में यह उनका प्रथम कार्यक्रम जरूर है किंतु इससे पूर्व अनेक बार नागपुर के विविध भागों में महफिलें हो चुकी है। पश्चिम महाराष्ट्र के कलाप्रेमीयों ने इन्हे बेहद पसंद किया है।पुणे की मराठी साहित्य परिषद ने श्री सुधाकर को बडे सम्मन के साथ सराहा है। कोल्हापूर नगर के कलाप्रेमी रसिकों का सम्मान श्री सुधाकर अनेक बार पा चुके है। रसिकों का यह प्यार ही उन्हे गाने की अपनी मस्ती बरकरार रखने की ताकद बख्शता है।
इसी संदर्भ में मराठी के विख्यात कवि श्री नारायण कुलकर्णी कवठेकर कहते है...
’मस्तीत गीत गा रे,
देतील साथ सारे’
रसिक साथ देंगे,भविष्य साथ देगा,इस विश्वास से श्री सुधाकर गाये जा रहे है। विदर्भ के एक लोकप्रिय मराठी कवि श्रीकृष्ण राऊत जीवन का अध्यात्म बडे सरल शब्दों मे बताते है...
’दुःख माझे देव झाले शब्द झाले प्रार्थना,
आरती जी गात आहे तीच माझी वेदना’
उन्होने जीवन में आनेवाले दुःखों को ईश्वर का दर्जा दे दिया और वेदना को आरती की संज्ञा...शब्द जो कवि की लेखनी और गायक के गले से उतरते हैं वेप्रार्थना हो गये।
और शृंगार के क्या कहने,तरल मुलायम शृंगार को शब्दांकित करने की कला में कविवर्य श्री सुरेश भट की कोई सानी नहीं। वे कहते है...
’ही कहाणी तुझ्याच न्हाण्याची
तापलेल्या अधीर पाण्याची...’
’हे तुझे अशा वेळी लाजणे बरे नाही
चेहरा गुलाबाने झाकणे बरे नाही’
और कहते है...
’पहाटे पहाटे मला जाग आली
तुझी रेशमाची मिठी सैल झाली’
इसी शृंगार का निर्वाह करते हुये पुणे के श्री अनिल कांबले कहते है...
’जवळ येता तुझ्या दूर सरतेस तू
ऐन वेळी अशी काय करतेस तू’
मराठी के एक बुजुर्ग कवि श्री उ.रा.गिरी ने एकाकीपन के तीव्र एहसास को बडी संजीदगी से शब्दों में ढाला है...
’या एकलेपणाचा छेडीत मी पियानो
ओठांस भैरवीच्या दंशून जा स्वरांनो
तिमिरात हरवलेली निद्रा अनाथ माझी
माझ्यासवे तुम्ही ही कां जागता कळ्यांनो’
निद्रा अनाथ कहने का कवि का यह अंदाज निराला है। इस रचना को श्री सुधाकर ने बडी गंभीर,गहन और दिल छू लेनेवाली तर्ज में ढाला है।’हरवलेली’ शब्द पर स्वरलहरी की जो करामात वे दिखाते है,वह खॊ जाने के भाव को मूर्त रूप समक्ष खडा करती है।रसिक स्वर की इस अदाकारी में खो जाता है।
संगीत का क्षेत्र ही ऐसा है,जहां गायक निरंतर विद्यार्थी बना रहता है।श्री सुधाकर कदम स्वयं को हमेशा के लिये विद्यार्थी मानते है।संगीत के क्षेत्र में श्री सुधाकर की साधना करीबन बीस वर्ष से कम नहीं है। वे स्वयं संगीतकार है स्वयं गायक है।उनकी दमदार आवाज किसी भी प्रभाव व नाटकीयता आवेश से मुक्त है।सच्चे कलाकार को जीवन में कितनी भी सफलता मिले,कितना भी वैभव प्राप्त हो जाये,उसके हृदय में एक चिरंतन उदासी का,एक चिरंतन सी अनबूझ प्यास का साम्राज्य होता है,इसी को उद्देशकर वो कहते है...
”सभी कुछ मिला ज़िंदगी से मगर
एक शम्मा जिगर में ही जलती रही’
हां !!! वे उर्दू-हिंदी ग़ज़ल गाने के भी अभ्यास में व्यस्त है।इसी प्यास के दर्द की शमा के प्रकाश में वे अपना मार्गक्रमण करते चले जायेंगे,ऐसा उनका विश्वास है।कलाकार की प्रकृति में निर्मोहीपन होना उसके वह होने का प्रमाण होता है।इसी से वे कहते है...
’अपनी तबीयत ही फकीराना है
वैसे जीने को हर बहाना है
पत्ते पत्ते पे है कफस का गुमान
कौन सी शाख आशियाना है’
सुधाकर की तबियत का फकीरानापन और सतत की खॊज ही उन्हे प्रगति के मार्ग पर निरंतर प्रेरणादायी होगी।विदर्भ के एक कोने में आर्णी जैसे गांव में जहां साधनो का अभाव हो सकता है,ऐसे स्थान में वे निरंतर साधनारत हैं यही इसका प्रमाण है।
दै.नवभारत,दि.६ जुलै १९८४
●डॉ.श्रीकृष्ण राऊत संपादित,#अक्षरमानव प्रकाशित सुधाकर कदम सन्मानग्रंथ #चकव्यातून_फिरतो_मौनी मधून...
Subscribe to:
Posts (Atom)