Tuesday, February 11, 2025
उर्दू ग़़ज़ल
इतना मुझे चाहा करो ना, इस के मैं क़ाबिल नही
मुझ सा कोई संगदिल न हो, तुम सा कोई बिसमिल नही
अपनी जगह तुम हो सही, अपनी जगह मैं ठीक हूँ
शिकावे-गिले जायज़ मगर,शिकवो से कुछ हासिल नही
चलना ही है ज़िंदादिली चलते रहो चलते रहो
मंज़िल सबक रुकने का ले,बेशक वो ज़िंदादिल नही
मौजे तमन्ना थाम ले कब तक कहाँ तक ऐ 'समीर'
दिल का समंदर है अजीब,इस का कोई साहिल नही
●headphone please...
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