"Tasawwur" Live
(Urdu ghazal programme)
GAZALANKIT-Sanskruti Arts Fesival,THANE.2015
न जाने किस दरिचे से मुहब्बत की महक आई
ये क़िस्मत के तमाशे है करो ना यूँ गिले शिकवे
बदलती ह न तक़दीरे खुदा ने है जो लिखवाई
मुझे संगदिल तू कह लेकिन तुझे भी मानना होगा
मेरे ही पास आ आ कर कटेगी तेरी तनहाई
कभी उस शख़्स के बार में अच्छी बात भी कह दो
नहीं रिश्ता रहा लेकिन बनो ना इतने हरजाई
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