. #उर्दू_ग़ज़ल #मेहफ़िल
मैं के तनहाई की चादर तानकर लेटा रहा
और ज़माना जाने क्या क्या दासतां कहता रहा
क्या मिला है चाँद को एक बेजुबानी के सिवा
ज़िंदगी भर जो पराई आग मे जलता रहा
ज़िंदगी मेरी है उस बेआब मोती की तरह
जो समंदर की तहो में रह के भी प्यासा रहा
शायर - हनीफ़ साग़र
गुलुकारा - प्राजक्ता सावरकर शिंदे
मोसिकार - 'शान-ए-ग़ज़ल' सुधाकर कदम
तबला - पं. किशोर कोरडे
●mobile REC...Headphone please.
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