गझल

माझी मराठी गझल गायकी

मराठी गझल गायकीला तशी कोणतीही परंपरा नाही.माझ्या अगोदर मराठी गझल,गझलसारखी गाण्याचा फ़ारसा प्रयत्न कोणीच केला नसल्यामुळे मराठी गझल गाणे हे माझ्यासाठी आव्हान होते.मराठीमध्ये गझल जशी उर्दूकडून आली तशीच मराठी गझल गायकीही उर्दू गझल गायकांकडून उचलावी लागली.माझी गायकी किंवा ढंग हा पाकिस्तानचे मेहदी हसन,फ़रिदा खानम,गुलाम अली व आपले जगजीत सिंग ह्यांच्या गायकीवरुन तयार झाला आहे.त्या काळात विदर्भातील यवतमाळ जिल्ह्यातील आर्णी सारख्या आडवळणी गावात वरील गायकांच्या ध्वनिमुद्रिका सुध्दा मिळत नव्हत्या.पाकिस्तान रेडिओवरुन जे काही ऐकायला मिळायचे त्यावरुन मला जेवढे शिकता येईल तेवढे शिकत गेलो.पुढे स्व.सुरेश भटांनी मला मेहदी हसन,फ़रीदा खानम, यांच्या ध्वनिफ़िती दिल्या.हळूहळू गुलाम अली,जगजीत सिंग,बेगम अख्तर यांच्याही गायकीचा अभ्यास करुन मी माझा वेगळा असा बाज निर्माण केला. (पृष्ठ क्रमांक क्लिक केल्यास एक- एक पृष्ठ आपल्याला वाचता येईल)

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Tuesday, October 6, 2020

सूरों का साधक....चंद्रशेखर बाजोरिया

.         मित्रता कब होंगी । कैसे होंगी, जीवन के किस मोड पर होगी, कहा नही जा सकता । कभी कभी कोई व्यक्ति आपके जीवन मे इस तरह प्रवेश कर जाता है कि वह तुम्हारे जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है ।
 इसी तरह एक मुलाकात हुई सुधाकर कदम से । भाग्योदय ऑर्केस्ट्रा में अकॉर्डीअन बजाते देखा था, बादमे मुलाकात हुई एक शास्त्रीय संगीत सभा में । मालुम पडा इनका रुझान अब लाईट म्युझिक से शास्त्रीय संगीत की ओर मुड गया है और अपने शास्त्रीय संगीत मे संगीत विशारद की उपाधी भी प्राप्त कर ली है ।
 यही से हमारी मैत्री बढने लगी । साथ में जुड गये स्व़ श्री शेखर सरोदे, प्रा़.विनायक भीसे । संगीत की बैठके होने लगी । इन्ही बैठकों मे मुझे सुधाकर के बारे में काफी कुछ जानने को मिला ।
 सुधाकर कभी दकीयानुसी विचारो का नही रहा । उसने शास्त्रीय संगीत की तपस्या की तो लाईट म्युझीक को पूजा भी है । गायन मे महारथ हासील करने की कोशीश की तो वाद्य यंत्रों से खेला भी है । खुद के संगीत के रीयाज के साथ दूसरो को भी संगीत की शिक्षा देने की कोशिश की है ।
 इस संगीत का सफर तय करने में उसे कितनी मुश्कीलों का सामना करना पडा मै जानता हूँ।
 चांदेकर परिवार की कन्या से प्रेम विवाह करने के बाद पारीवारिक जीम्मेवारी, आर्थिक समस्या सामने खडी थी । यवतमाल में कहीं नौकरी उपलब्ध न थी अंत मे समझोता कर आर्णी जैसे छोटे से गॉंव मे संगीत शिक्षक की नौकरी कर ली ।
 आर्णी में कोई संगीत का मार्गदर्शक नही । कुछ करने की तमन्ना मनमें है । पर किसी का प्रोत्साहन नही । आजकल कला के क्षेत्र में भी उँचाइयों को छूने के लिये किंग मेकर की जरुरत होती है । वो भी उपलब्ध नही ।
 अंत में एकलव्य का ही सिध्दांत अपनाकर पंडीत जसराजजी को प्रेरणा स्त्रोत बनाकर आर्णी मे ही रियाज शुरु किया । उस वक्त गजल का दौर शुरु हो चुका था । गुलाम अली, मेहदी हसन, पंकज उधास, अनुप जलोटा इनका नाम शीर्षस्थ पर चल रहा था । उसी वक्त सुधाकर कदम मराठी के शीर्षस्थ कवि श्री सुरेशजी भट के संपर्क में आये और उनकी लिखी हुई मराठी की गजलो को संगीत में ढाला ।
 मुझे याद है वह रात जब शायद पहली बार सुधाकर कदम ने यवतमाल जूनिअर चेंबर्स के तत्वावधान में मराठी के गजलों का कार्यक्रम स्थानीय टाऊन हॉल मे दिया था । रसिक वृंद झूम उठे थे । शायद यवतमाल के रसिको को पहली बार आभास हुआ कि यवतमाल में एक इतना अच्छा कलाकार है । उसी वर्ष इन्हे भारतीय जुनिअर चेंबर ने महाराष्ट्र के दस सर्वोत्कृष्ट युवकों में से एक का पुरस्कार दिया । संपूर्ण महाराष्ट्र में सुधाकर कदम के मराठी गजलों के कार्यक्रम हुए, सराहें गये ।
 इन्ही व्यस्तताओं के बावजुद आर्णी में गांधर्व संगीत विद्यालय की स्थापना की । कई विद्यार्थीयों को संगीत की शिक्षा दी । आर्णी मे हर वर्ष कलाकारों के लिये प्रतियोगिता आयोजीत की उन्हे पुरस्कृत किया ।
 एक खास बात देखी, वो सिर्फ खुद के लिये नही जीता बल्की संगीत के लिये जीता है, सूरों के लिए जीता है ।

अध्यक्ष, 
यवतमाल कॉटन सिटी जेसीज.
१९८३



 





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