रफ़्तार से बिजली की चली है उर्दू
अंदाज़ में लश्कर के पली है उर्दू
मंगोल इसे लाये न तुर्की लाये
दिलवालों की दिल्ली में पली है उर्दू
जोगी आवारा मुसाफ़िर बन गए
जो बने हम तेरे ख़ातिर बन गए
नाम को जिन में न थी बू-ए-वफ़ा
कागज़ी फुलों के ताज़िर बन गए
हम तो अपनी सादगी में मस्त है
आप तो हर फन में माहिर बन गए
गुलुकार - मयूर महाजन और प्राजक्ता सावरकर शिंदे
शायर - हनीफ़ साग़र
मोसिकार - 'शान-ए-ग़ज़ल' सुधाकर कदम
तबला - देवेन्द्र यादव
हार्मोनियम - रामेश्वर ताकतोडे
व्हायोलिन - हरीश लांडगे
की बोर्ड - आशिष कदम
निज़ामत - रफ़िक़ क़ाज़ी
■संत ज्ञानेश्वर सभागृह अमरावती,दि.२६ डिसेंबर २०२४.
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